भारतीय ज्ञान परंपरा से युवाओं का उत्थान विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन

हरिद्वार : श्री भगवानदास संस्कृत महाविद्यालय में भारतीय ज्ञान परंपरा से युवाओं का उत्थान विषय पर केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के सहयोग से राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन हरिद्वार की महापौर श्रीमती किरण जैसल ने दीप प्रज्वलित कर किया, उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा एक सागर है जिसमें सब प्रकार का ज्ञान समाहित है। आधुनिक परिप्रेक्ष्‍य में युवाओं को भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्व से अवगत कराना अत्यंत आवश्यक है। आज हमारे समाज के युवा नशा आदि विकारों से ग्रस्त हैं उन्हें अपनी भारतीय परंपरा के गौरव का ज्ञान करना आवश्यक है। वक्ता के रूप में उपस्थित डॉक्टर सर्वेश कुमार तिवारी ने कहा कि युवाओं को चरित्र की रक्षा अवश्य करनी चाहिए। चरित्र के बिना मनुष्य का कोई मूल्य नहीं है वर्तमान में धन को महत्व दिया जाता है जबकि समाज का मूल चरित्र है। डॉ मुकेश कुमार गुप्ता ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा 14 विद्याओं और 64 कलाओं से शोभित है। हमारी नई शिक्षा नीति में इस ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है, युवाओं के बिना हम भारतीय ज्ञान परंपरा को आगे नहीं बढ़ा पाएंगे। लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति ने हमारी संस्कृति को समाप्त करने का प्रयास किया था। अब भविष्य भारतीय ज्ञान परंपरा का है। डॉ बबलू वेदालंकार ने कहा कि युवाओं का उत्थान गुरुकुल शिक्षा से संभव है, क्योंकि गुरुकुल में निरन्‍तर छात्र गुरु के सान्निध्य में रहता है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली युवाओं को धन अर्जित करना तो सिखाती है परंतु मनुष्य बनना नहीं सिखाती। वैदिक शिक्षा प्रणाली युवाओं को मनुष्य बनाना सिखाती है। मसूरी से उपस्थित डॉ प्रमोद कुमार भारतीय ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा किसी धर्म, जाति, वर्ग विशेष के उत्थान की कामना नहीं करती है अपितु यह परंपरा मनुष्यमात्र के उत्थान के लिए है। डॉ हरिगोपाल शास्त्री ने कहा कि आज युवा भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान को समझना नहीं चाहता है, यदि भारत को सिरमौर बनाना है तो युवाओं को भारतीय ज्ञान परंपरा को पढ़ना होगा। कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ ओमप्रकाश भट्ट ने कहा कि युवा पीढ़ी अवसाद से ग्रस्त होती जा रही है। आधुनिक युवा संस्कारों से हीन है, भारतीय ज्ञान परंपरा में 16 संस्कार बताए गए हैं, जिनके माध्यम से मनोवांछित संतान प्राप्त की जा सकती है। भारतीय ज्ञान परंपरा पूर्णतया वैज्ञानिक है। पाश्चात्य संस्कृति के अनुयायियों ने इस ज्ञान परंपरा पर हमेशा कुठाराघात किया है। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य डॉ विजेन्‍द्र कुमार सिंहदेव ने सभी अतिथियों का स्वागत किया तथा डॉ निरंजन मिश्रा ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी वक्ताओं का धन्यवादज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ रवीन्‍द्र कुमार वे डॉ आशिमा श्रवण ने किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के डॉ. मञ्जु पटेल, डॉ संजीव कुमार, डॉ अतुल चमोला, डॉ. आलोक कुमार सेमवाल, डॉ. अङ्कुर कुमार आर्य, श्री शिवदेव आर्य, श्री आदित्य प्रकाश, डॉ. सुमन्त कुमार सिंह, श्री नरेश भट्ट, श्री मनोज कुमार, श्री अतुल मैखुरी आदि छात्र व कर्मचारी उपस्थित रहे।

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