युवा आधुनिक भारत से जुड़े ः श्री धनसिंह रावत
अवसर को पहचानें, सौभाग्य को जगायेंः डॉ चिन्मय पण्ड्या
हरिद्वार 01 अक्टूबर।
देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, देवभूमि उत्तराखण्ड विवि-देहरादून एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में देव संस्कृति विश्वविद्यालय में दो दिवसीय ज्ञान कुंभ हरिद्वार का शुभारंभ हुआ। उच्च शिक्षा मंत्री श्री धनसिंह रावत, देसंविवि कुलपति श्री शरद पारधी, प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या एवं अतिथियों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन कर ज्ञानकुंभ का उद्घाटन किया।
इस दौरान वक्ताओं ने माना कि देश को विकसित राष्ट्र बनाने के साथ ही आत्मनिर्भर, आधुनिक, नए और समृद्ध भारत के निर्माण में शिक्षा की अहम भूमिका है, क्योंकि आत्मनिर्भर भारत, नए भारत, समृद्ध, सशक्त, शक्तिशाली और खुशहाल भारत के निर्माण में देश की शिक्षा व्यवस्था का बहुत बड़ा महत्व है। इसी सोच के साथ देश को एक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति मिली है। इस नई शिक्षा नीति से देश को एक नया आत्मविश्वास और एक नई ऊर्जा मिलेगी। वक्ताओं ने कहा कि जैसा कि ज्ञान कुंभ के नाम से परिलक्षित होता है कि ज्ञान और रचनात्मकता की कोई सीमा नहीं होती। इसलिए हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि ज्ञान, विचार और कौशल, स्थिर नहीं है बल्कि ये सतत चलने वाली प्रक्रिया है। ज्ञान सिर्फ व्यक्ति विशेष का नहीं, बल्कि समाज और देश की धरोहर होता है, इसलिए इस धरोहर को हमें ज्ञान के रूप में संजोकर रखना है और स्वयं के साथ ही युवा पीढ़ी को इस ज्ञान की मुख्य धारा से जोड़ना है।
मुख्य अतिथि उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सहकारिता मंत्री श्री धनसिंह रावत ने आज युवाओं को आधुनिक भारत से जुड़ने का आवाहन किया। उन्होंने कहा कि आधुनिकता के साथ जुड़ने से पर्यावरण संरक्षण, सूचना प्रौद्योगिकी, योग, स्वास्थ्य, पर्यटन आदि क्षेत्रों में विकास किया जा सकता है। कैबीनेट मंत्री ने कहा कि ज्ञानकुंभ से जो अमृत निकलेगा, वह युवाओं को सकारात्मक दिशा देने के साथ उन्हें आत्म निर्भर भारत की दिशा में बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा, ऐसा विश्वास है। श्री रावत ने देवभूमि उत्तराखण्ड को विकसित राज्य बनाने के लिए सभी से सुझाव देने के लिए आवाहन किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में देवसंस्कृति विवि के प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि यह समय गंभीर संकटों से गुजर रहा है। इस अवसर को पहचाने, तभी हम मानवता में सकारात्मक बदलाव कर सकते हैं। युवा आइकान डॉ पण्ड्या ने कहा कि अवसर को पहचानने वाले सिद्धार्थ ने महात्मा बुद्ध बनें। महाराष्ट्र के नारायण समर्थ गुरु रामदास बन पाये। बालक श्रीराम ने युगऋषि, युगव्यास पं श्रीराम शर्मा आचार्य के रूप में विख्यात हुए। उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा ऋषि प्रणीत संस्कार है। सुसंस्कार से ही व्यक्तित्व उभरता है। कुलपति श्री शरद पारधी ने आभार प्रकट किया।
इससे पूर्व शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय महासचिव श्री अतुल भाई कोठारी, भारतीय विश्वविद्यालय संघ के महासचिव डॉ पंकज मित्तल, देवभूमि उत्तराखण्ड विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संजय बंसल आदि ने भी अपने-अपने विचार रखे।
उद्घाटन कार्यक्रम के समापन से पूर्व विभिन्न पत्रिकाओं का विमोचन किया गया। साथ ही देसंविवि के कुलपति व प्रतिकुलपति ने अतिथियों को युगऋषि पूज्य आचार्यश्री द्वारा रचित युगसाहित्य, प्रतीक चिह्न, गायत्री महामंत्र लिखित उपवस्त्र आदि भेंटकर सम्मानित किया। इस अवसर देसंविवि, देवभूमि उत्तराखण्ड विवि एवं शिक्षा संस्कृति न्यास दिल्ली से जुड़े अनेक शिक्षाविद, पदाधिकारी सहित विद्यार्थीगण उपस्थित रहे। कार्यक्रम का समापन माननीय राज्यपाल के उद्बोधन के साथ 2 अक्टूबर को होगा।