धनौरी पी. जी. कॉलेज, हरिद्वार में हिंदी विभाग द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

हरिद्वार स्थित महाविद्यालय धनौरी पी. जी. कॉलेज, धनौरी में दिनांक 05 जनवरी 2025 को हिंदी विभाग द्वारा उत्तराखंड संस्कृत अकादमी हरिद्वार के तत्वाधान में “हिंदी भाषा के विकास में संस्कृत भाषा का योगदान एवं संस्कृत साहित्य में तनाव प्रबंधन के विविध रूप” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं शिक्षण संस्थानों के प्रख्यात विद्वानों, शोधकर्ताओं, शिक्षकों एवं छात्रों ने सहभागिता की। संगोष्ठी का उद्देश्य हिंदी भाषा के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और समकालीन महत्व पर गहन विमर्श करना था।

संगोष्ठी का शुभारंभ प्रबंधन समिति के सचिव श्री आदेश कुमार सैनी जी, श्री सत्येंद्र प्रसाद डबराल (वित्त अधिकारी, उत्तराखंड संस्कृत अकादमी, हरिद्वार), प्रो. (डॉ.) सत्येंद्र मित्तल (प्रति-कुलपति, पतंजलि योग विश्वविद्यालय, हरिद्वार), डॉ. वाजश्रवा आर्य (उत्तराखंड संस्कृत अकादमी, हरिद्वार), प्रो. राम विनय सिंह (मुख्य वक्ता) डी.ए.वी महाविद्यालय देहरादून , प्रो. नागेंद्र कुमार (वरिष्ठ प्रोफेसर, मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की, हरिद्वार) एवं डॉ. वेद व्रत (विशिष्ट अतिथि, गुरुकुल कांगड़ी सम विश्वविद्यालय) महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर डॉ विजय कुमार तथा संगोष्ठी के संयोजक डॉ गौरव कुमार मिश्र सहसंयोजक डॉ. गुड्डी चमोली, डॉ. रोमा की अध्यक्षता में मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष पुष्पांजलि और दीप प्रज्वलन कर किया गया तत्पश्चात छात्राओं द्वारा सरस्वती वंदना भी प्रस्तुति की गई। महाविद्यालय के प्राचार्य महोदय प्रोफेसर विजय कुमार जी ने कार्यक्रम में आए हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया और उन्होंने अपने वक्तव्य में बताया कि संस्कृत भाषा हिंदी भाषा की ही नहीं वह अन्य भाषाओं की भी आधारशिला है।

संस्कृत भाषा हिंदी की जननी है और इसके व्याकरणिक एवं साहित्यिक तत्व हिंदी भाषा को समृद्ध करते हैं। इस विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. वाजश्रवा आर्य ने कहा कि हिंदी भाषा की समृद्धि में संस्कृत भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। संस्कृत के शास्त्रीय ग्रंथों से हिंदी साहित्य ने न केवल काव्यगत सौंदर्य ग्रहण किया, बल्कि भाषा की वैज्ञानिकता और संरचना भी सीखी।

प्रो. डॉ. सत्येंद्र मित्तल ने संस्कृत भाषा को भारतीय संस्कृति का मेरुदंड बताते हुए इसके पुनर्जीवन एवं गुरुकुल परंपरा की पुनर्स्थापना की आवश्यकता पर बल दिया।

संस्कृत साहित्य में योग, ध्यान और जीवन प्रबंधन से जुड़े अनेक दृष्टांत मिलते हैं, जो आज के तनावपूर्ण जीवन में भी प्रासंगिक हैं। इस विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रो. राम विनय सिंह ने बताया कि महाभारत के युद्ध में जब तनाव चरम पर था, तब श्रीकृष्ण के वचनों से गीता का जन्म हुआ। उन्होंने समझाया कि हर व्यक्ति के मन में महाभारत चलता रहता है, और हमें संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

प्रो. नागेंद्र कुमार ने बताया कि जिस प्रकार नदी के प्रवाह को रोकने से उसमें विकृति आ जाती है, उसी प्रकार भाषा का ठहराव भी उसके पतन का संकेत है। उन्होंने हिंदी भाषा को प्रवाहमान बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया।

डॉ. वेद व्रत ने कहा कि योग और ध्यान के माध्यम से मानसिक तनाव को दूर किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि मनुष्य का स्वभाव ऐसा है कि वह थोड़े-से सुख से बहुत अधिक प्रसन्न हो जाता है और छोटे-छोटे दुखों से अत्यधिक व्यथित हो जाता है।

संगोष्ठी में विभिन्न शोधार्थियों एवं विद्वानों ने हिंदी भाषा के विकास, संस्कृत साहित्य, एवं तनाव प्रबंधन पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। नेशनल इंटर कॉलेज के सहायक अध्यापक राधेश्याम भर्खोंडी ने “हिंदी भाषा के विकास में संस्कृत भाषा का योगदान” विषय पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम के अंत में संगोष्ठी के संयोजक डॉ. गौरव कुमार मिश्र ने सभी आगंतुकों, वक्ताओं एवं सहभागियों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर कला विभाग द्वारा निर्मित कलाकृतियों को अतिथियों को स्मृति चिह्न के रूप में भेंट किया गया।

महाविद्यालय प्रबंधन समिति के सचिव श्री आदेश कुमार सैनी ने सभी को शुभकामनाएँ दीं एवं भविष्य में भी ऐसे शैक्षिक कार्यक्रमों के आयोजन के लिए संपूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. हरीश चंद्र गुरुरानी एवं डॉ. अरविंद कुमार श्रीवास्तव ने किया। संगोष्ठी की सफलता में महाविद्यालय के सभी सहायक आचार्यगण, शिक्षणेत्तर कर्मचारियों, उपनल कर्मचारी महाविद्यालय के छात्र-छात्राएं एवं अन्य महाविद्यालयों से आए हुए सहायक आचार्य का विशेष सहयोग रहा।

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