निरंजनी अखाड़े में महंत कुर्षिपुरी महाराज का भव्य सम्मान, संत एकता और सनातन धर्म की रक्षा का लिया संकल्प : श्रीमहंत रविंद्रपुरी बोले, कालनेमी जैसे तत्वों से सावधान रहने की जरूरत, संतों की एकजुटता समय की मांग

हरिद्वार: श्री रघुनाथपुरी मठ, नानकपरा (गुजरात) के परमाध्यक्ष महंत कुर्षिपुरी महाराज का पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में भव्य स्वागत और सम्मान किया गया। अखाड़े के सचिव एवं अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज की अध्यक्षता में हुए इस समारोह में उन्हें चादर ओढ़ाकर और पुष्पमालाएं पहनाकर सम्मानित किया गया।

हरिद्वार स्थित निरंजनी अखाड़े में हुए इस आयोजन में बड़ी संख्या में संत, महंत, पंच परमेश्वर और श्रद्धालु मौजूद रहे। समारोह में बोलते हुए श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि महंत कुर्षिपुरी महाराज जैसे संत समाज और सनातन धर्म की धरोहर हैं। उन्होंने अपने जीवन को धर्म, सेवा और समाज कल्याण के लिए समर्पित किया है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में कुछ कथित साधु-संत, जो वास्तव में सनातन धर्म के विरोधी हैं, समाज में भ्रम फैला रहे हैं। ऐसे “कालनेमी” जैसे तत्वों से सावधान रहने की जरूरत है। उत्तराखंड सरकार इन पर लगाम लगाने के लिए जो प्रयास कर रही है, वह सराहनीय है।

उन्होंने यह भी घोषणा की कि आगामी कुंभ मेले में दशनामी गोस्वामी समाज अखाड़ा, पंचायती अखाड़ा निरंजनी के साथ ही स्नान करेगा। इससे अखाड़े की गरिमा और एकता को नई मजबूती मिलेगी।

अखाड़े के सचिव श्रीमहंत राम रतन दास महाराज ने कहा कि महंत कुर्षिपुरी महाराज न केवल अखाड़ा परंपराओं के सच्चे संवाहक हैं, बल्कि युवाओं को धर्म से जोड़ने का कार्य भी निष्ठा से कर रहे हैं। उन्होंने उन्हें निरंजनी अखाड़े की परंपराओं का सच्चा प्रतिनिधि बताया।

सम्मान प्राप्त करने के बाद महंत कुर्षिपुरी महाराज ने कहा कि उनका जीवन सनातन धर्म और निरंजनी अखाड़े की परंपराओं को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित है। उन्होंने कहा कि संत समाज का मूल उद्देश्य समाज को दिशा देना, भटके हुए लोगों को धर्म के मार्ग पर लाना और संस्कृति की रक्षा करना है।

इस अवसर पर श्रीमहंत राजगिरि,श्रीमहंत प्रकाश पुरी, महंत शुभम गिरि, दिगंबर पवनेश पुरी समेत गुजरात से आए श्रद्धालु देवेंद्रभाई देसाई, गमनभाई देसाई, हार्दिकभाई देसाई, भविनभाई मेहता, आशीषभाई पटेल, शिवभाई नायक, राजबाई पटेल समेत बड़ी संख्या में संत और श्रद्धालु उपस्थित रहे। इस सम्मान समारोह ने एक बार फिर संत समाज की एकजुटता, अखाड़ा परंपराओं की गरिमा और सनातन धर्म की रक्षा-संवर्धन के संकल्प को मुखरता से सामने रखा।

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