आयुर्वेद केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक वैज्ञानिक पद्धति है:राज्यपाल

उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के ऋषिकुल परिसर, हरिद्वार में आयोजित द्वितीय दीक्षांत समारोह में उत्तराखण्ड के राज्यपाल एवं विश्वविद्यालय के कुलाधिपति लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने मुख्य अतिथि के रूप में प्रतिभाग किया। इस अवसर पर उन्होंने विद्यार्थियों को उपाधियाँ प्रदान कर उन्हें उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ दीं। दीक्षांत समारोह में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले छात्रों को स्वर्ण पदक प्रदान किए गए जिनमें अधिकांश संख्या बालिका छात्रों की थी। राज्यपाल ने इस उपलब्धि को नारी सशक्तीकरण का प्रतीक बताते हुए कहा कि यह दर्शाता है कि बेटियाँ हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।

राज्यपाल ने अपने संबोधन में कहा कि आयुर्वेद केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक वैज्ञानिक पद्धति है। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को आयुर्वेद के क्षेत्र में नवाचार एवं अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करना चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि आयुर्वेद में विभिन्न प्राकृतिक औषधियों और उपचार विधियों के माध्यम से संक्रमण से लड़ने की शक्ति होती है जो बिना किसी हानिकारक प्रभाव के रोग निरोगी गुण प्रदान करती हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार के लिए किए जा रहे प्रयास सराहनीय हैं लेकिन यह हम सभी का कर्तव्य है कि हम आयुर्वेद के गुणों का अधिक से अधिक प्रचार एवं प्रसार करें।

राज्यपाल ने कहा कि देवभूमि उत्तराखण्ड, ज्ञान और आध्यात्मिकता का केंद्र होने के साथ-साथ चेतन के उत्थान की समृद्ध परंपरा का वाहक है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद दुनिया की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक होने के साथ-साथ विश्व को भारत की एक अमूल्य देन है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन बनाए रखते हुए समग्र स्वास्थ्य प्रबंधन पर बल दिया जाता है। उन्होंने कहा कि आधुनिकता बढ़ने के साथ-साथ हमने इस पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करना कम कर दिया था लेकिन अब जागरूकता बढ़ने और आयुर्वेद के लाभ की सटीक जानकारी मिलने से हमारी यह प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर जन-जन में लोकप्रिय हो रही है।

राज्यपाल ने कहा कि आयुर्वेद केवल चिकित्सा पद्धति नहीं, बल्कि स्वस्थ जीवनशैली का आधार है। उन्होंने वर्तमान समय में बढ़ते तनाव, चिंता और अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं के समाधान में आयुर्वेदिक औषधियों, पंचकर्म एवं योग की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि योग और ध्यान, प्राचीन भारतीय परंपरा के वह अमूल्य उपहार हैं, जो व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक संतुलन को बनाए रखते हैं। राज्यपाल ने विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे आयुर्वेद के क्षेत्र में नवीन शोध एवं अनुसंधान पर विशेष ध्यान दें। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक चिकित्सा एवं औषधीय पौधों के वैज्ञानिक अध्ययन से हम वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान निकाल सकते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार के लिए डिजिटल तकनीक एवं आधुनिक विज्ञान के साथ समन्वय स्थापित करने पर भी जोर दिया।

इस अवसर पर सचिव आयुष एवं आयुष शिक्षा श्री रविनाथ रामन ने कहा कि आयुर्वेद चिकित्सक होना गर्व की बात है। उन्होंने कहा कि भारत की प्राचीन संहिताओं में वर्णित आयुर्वेद के ज्ञान को चिकित्सकों ने अपने अध्ययनकाल में ग्रहण किया है जिसका लाभ समस्त मानवता को प्राप्त होगा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में पीएचडी पाठ्यक्रम में प्रथम बार अभ्यर्थी पंजीकृत किए गए हैं, साथ ही व्यावहारिक उपयोगिता की दृष्टि से महत्वपूर्ण सर्टिफिकेट एवं डिप्लोमा कोर्स भी संचालित किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आयुष स्वास्थ्य पर्यटन, जड़ी-बूटियों की खेती एवं उनके विक्रय को गतिशीलता देने के लिए उत्तराखण्ड सरकार वचनबद्ध है।

दीक्षांत समारोह में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) अरुण कुमार त्रिपाठी ने विश्वविद्यालय की प्रगति आख्या प्रस्तुत करते हुए बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के अनुपालन में प्रकृति परीक्षण अभियान को बड़े पैमाने पर समन्वित किया गया है और साथ ही छात्र हित में विभिन्न फार्मा कंपनियों के साथ एमओयू किए गए हैं एवं विश्वविद्यालय में आयुर्वेदिक दवाओं के नैदानिक परीक्षण भी किए जा रहे हैं।

इस अवसर पर अपर सचिव एवं निदेशक आयुष डॉ. विजय जोगदण्डे, उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलसचिव रामजी शरण शर्मा सहित सभी प्राचार्यगण, संकाय अध्यक्ष, विद्यार्थी एवं अभिभावकगण उपस्थित रहे।

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